सूर्य संयम
एक विशेष विधि द्वारा, एक विशेष प्रक्रिया के द्वारा प्राकृतिक सूर्य पर संयम करने से अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
समस्त भुवनों का ज्ञान सूर्य संयम के अभ्यास द्वारा सहजता में प्राप्त हो जाता है। हमारे भारतीय ऋषियों ने, संत महात्माओं ने इस सूर्य संयम की विशेषता को बतलाया है तथा इसका अभ्यास करके अपने अंदर अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति को प्राप्त किया है । यह संयम अध्यात्म-विज्ञान के अंदर बड़ा ही अलौकिक संयम माना जाता है इसलिए इसे बिना अच्छी तरह से जाने अपने मन से अभ्यास नहीं करना चाहिए।
”भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्”
‘विश्व राज्य विधान’ के अंदर विश्व के कल्याण हेतु अनेक विधानों का वर्णन है जिसे जानकर, अपनाकर व्यक्ति का ही नहीं अपितु समाज का, साथ ही संपूर्ण विश्व का आध्यात्मिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्राप्त होगा।
सूर्य संयम करने की विधि
अध्यात्म जगत के सम्राट, सूर्य के समान देदीप्यमान प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज ने सूर्य संयम की विशेष विधि का वर्णन करते हुए साधकों के उत्थान एवं बौद्धिक तथा आध्यात्मिक प्रगति के लिए बतलाया है कि सूर्य संयम और प्राणायाम एवं मूल बंध शीर्षासन करने से साधक का शारीरिक स्वास्थ्य दृढ़ होता है। इसका प्रभाव मानसिक क्षेत्र पर भी अनुकूल पड़ता है।
सूर्य के सामने मानसिक संकल्प के साथ सूर्य की शक्ति का अपने भीतर आकर्षण करना चाहिए। यह विद्यार्थियों तथा व्यायाम करने वालों के लिए उपयोगी है।
आगे पुनः सूर्य संयम के विषय में बतलाते हुए प्रथम आचार्य श्री कहते हैं कि नेत्र संचालन और आसेक एवं सूर्य की किरणों को भूमि के सामने दृष्टि खोलकर देखना और मानसिक संकल्प अपने विशेष प्रदेश में केंद्रित रहें यही सूर्य संयम है।
बिना गुरु के अपने मन से यह क्रिया नहीं करनी चाहिए। सूर्य के सामने दृष्टि रखने से सूर्य की गर्मी आंख की शक्ति नष्ट करती है इस बात का भी ध्यान रखें।
प्रथम परंपरा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज ने सूर्य संयम में विशेष सावधानी बरतने की बात कही है ध्यान हम सभी को रखना चाहिए। सदगुरुदेव के अनुसार सूर्य प्रकृति के अंदर एक महान शक्ति है। सूर्य द्वारा अंतर-योगाभ्यास द्वारा से तेज, बल, प्रताप होता है। यह योगविद्या है। इसका ज्ञान अध्यात्मविद्या के ज्ञाता परम महर्षि द्वारा हो ककता है। भौतिक विज्ञान में बाह्य सूर्य-संयम द्वारा अनेक रोग, कष्टों की निवृति हो सकती है। चर्मरोग इससे दूर होते हैं। विजय शक्ति का संग्रह सूर्य के किरणों के प्रयोग द्वारा हो सकता है। अग्नि और सूर्य की उपासना वैदिक है। इसकी उपासना विज्ञानयुक्त और साधनयुक्त हो, तब सूर्य-संयम का प्रभाव जीवन पर पूरा पड़ता है। सारे अंग-प्रत्यंग पर सूर्य की शक्ति शक्ति है। प्राकृतिक विज्ञान और अंतर के दिव्य प्रयोग से सूर्य का तेज , प्रताप जीवन में अवतीर्ण होता है। अतएव सूर्य-संयम महान विज्ञान है। अतएव काल के भेद से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक नहीं कर सकता है। सूर्य की किरणों से जल में शक्ति रहती है। सूर्य से मानसिक शक्ति का उद्धार होता है। जीवन में उन्नति के अनेक दृष्टिकोण हैं। तेज, बल, प्रताप के लिए सूर्य का संयम है। ईश्वर प्राप्ति के लिए नहीं।